BHARATTV.NEWS, CHITRA: इसे शुद्ध पेयजल की दुर्लभता कहा जाए या बगैर झरना गढ्ढा के पानी पिए बिना कोयलांचल के जमुआ गांव के आधी से ज्यादा आबादी की प्यास नहीं बुझती है। कहना बेहद कठिन है। हकीकत जो भी हो। लेकिन यहां से पेयजल ले जाने वाली महिलाओं व लोगों का जमघट सुबह शाम लगा रहता है।
यह उल्लेख करना आवश्यक है कि उक्त गांव चितरा कोलियरी के सूखा क्षेत्र में स्थित है। गांव की बहुसंख्यक आबादी सालों भर जल की किल्लत से जूझती रहती है। गर्मी के दिनों उनकी परेशानी और बढ़ जाती है। इन दिनों इस गांव और ताराबाद के अधिकांश कुआं चापाकल जलापूर्ति करने के बजाए धोखा देने लगते हैं। कोलियरी प्रबंधन की तरफ से गांवों में टैंकर से जलापूर्ति अवश्य की जाती है। लेकिन इस जल का इस्तेमाल लोग बर्तन कपड़े धोने के साथ-साथ नहाने के लिए करते हैं। यह पेयजल की श्रेणी में नहीं आता है। लिहाजा इस दृष्टि से देखा जाए तो यहां के लोग पेयजल की दुर्लभता के कारण ही झरना गढ़ा का जल सेवन करने को विवश हैं। इस संबंध में होपना मरांडी, छोटू हांसदा, शिवधन मुर्मू, फुलमनी देवी, कोलो मरांडी समेत अन्य महिलाओं व लोगों का कहना है कि अगर गांव में शुद्ध पेयजल उपलब्ध रहता तो कोई शौक से एक किलोमीटर दूरी से अपने सर पर ढोकर पानी नहीं लाते। इतना ही नहीं सुबह नींद टूटने के साथ ही झरना गढ़ा की तरफ चलना पड़ता है। यहां इतनी भीड़ हो जाती है कि पानी लेने के लिए अपनी बारी का इंतजार करना जरूरी हो जाता है। ऐसा ही सूर्य के अस्ताचल की ओर जाने के दौरान प्रतिदिन हुआ करता। बाहरहाल कारण जो भी हो इस गांव के लिए झरना गढ़ा ही एकमात्र जल स्रोत है जिससे लगभग 500 से अधिक लोगों की प्यास बुझती है।






