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” म्ई दिवस क्यों?”

साहित्य

पूरे विश्व भर में 1 म्ई को म्ई दिवस अथवा मजदूर दिवस के रूप में मनाते हैं। पर क्यों?

क्यों कि एक म्ई वह गौरवपूर्ण दिन है जिसमें अग्रदूत के रूप मेंं लाखों मजदूरों की पवित्र कुर्बानी को याद किया जाता है।।
“महामानवेत्ता कार्लर्माक्स “ने पेरिस की उस घटना को लेकर , जो 1817.ई.के अप्रैल माह को घटी थी। जिसमें हजारों हजार मेहनतकश मजदूरों को आठ दिनों में (21 म्ई से 28 म्ई में) पूंजीवादी समर्थकों ने 15,000 से 30,000 मजदूरों को मार डाला था। हजारों मजदूरों को जेल में डाला गया था और हजारों हजार मेहनतकश मजदूरों को देश-निकाला किया गया था।
उसी घटना को लेकर कार्ल मार्क्स ने कहा था कि– ” उनके शहीद मज़दूर महान हृदयों में प्रतिष्ठित हैं और सदा रहेंगे। और उनके विध्वंसकों की इतिहास सदा के लिए दिल में कील की तरह ठोंक दिया गया है जिसमें उनके पुरोहितों की प्रार्थनाएं भी उन्हें मुक्त करा नहीं पायेंगी ।”

कार्ल मार्क्स का कहना था कि–
” जो भी है इस भूखंड में
वह है सभी के उपयोग का।
मगर मजदूरों को वंचित रखते हैं
साधन बनाते हैं शोषण व भोग का।।
कार्ल मार्क्स ने अपनी पुस्तक
” दास केपिटल ” में लिखा है कि_ ” मजदूर जितना उत्पादन अथवा उत्पन्न करता है, उससे बहुत कम कीमत के रूप में वे मजदूरी पाते हैं ” महान् क्रान्तिकारी कार्ल मार्क्स ने कहा था कि_
” मेहनतकश मजदूरों ने अपने श्रम से संसार का पालन पोषण करता है। फिर भी उन्हें वाजिब हक नहीं मिल पाता है। एक अनाज से सौ अनाज पैदा करने वाले वह मजदूर किसान कभी आधे पेट तो कभी खाली पेट भुखे रह जाता है जो औरों के लिए ऊंचे-ऊंचे आलिशान महल बनाते हैं उसे खुद रहने के लिए एक छत भी नशीब नहीं होता है। कार्ल मार्क्स ने कहा था_
उत्पादन का सारा लाभ और सारा सुख कामचोरों द्वारा झपट लिया जाता है और दुःख का हिस्सा गरीबों पर थोप दिया जाता है।।”

इसलिए कहा गया है कि__
” सच्चे दिल से देखो सोचकर
मजदूर ही तो है भगवान।
सब-कुछ कमाकर हमको देता
यही तो है सच्चा इंसान।।१
*इनकी पूजा नहीं करते हैं
करते हैं पत्थर पूजन ।
बेइमान बन कर ये शैतान
इनका ही करते हैं शोषण *।।२
ऊंच-नीच का भेद रखते हैं
मानव मानव से करते हैं घृणा।
चाहे जितना भी दे दो उन्हें
फिर भी नहीं मिटती है तृष्णा।।३

आज आजाद भारत में भी समाजवादी नेता डा. राममनोहर लोहिया ने कहा था-

” जात-पात और मूर्ति पूजन, ब्राह्मणवाद सिर्फ शोषण करने का रास्ता है”इससे मानव का कल्याण कभी नहीं हो सकता है”

उन्होंने कहा था-
” मूर्ति बनाने वाले मेहनतकश मजदूरों और कलाकारों की पूजा ये कभी नहीं करते और न ही उनका गुणगान अथवा प्रशंसा करते हैं।मगर उन्हीं कलाकारों द्वारा निर्मित मूर्ति स्थापित करने में या उनकी प्राण प्रतिष्ठा समारोह में बड़े बड़े पंडितों को बुला कर लाखों खर्च करते हैं।दान दक्षिणा में मोटी रकम खर्च करते हैं। जबकि उन विश्वकर्मा रूपी मजदूर भगवान को उचित सम्मान भी नहीं दिया जाता है।”उस मूर्ति के निर्माण कार्य में और उस मंदिर के निर्माण कार्य में मजदूरों के खून पसीना लगा होता है। ऐसे मेहनत करने वाले मजदूर भी छुआछूत के शिकार होते हैं। एक मजदूर और मेहनतकश कैसे उस मंदिर और मूर्ति के लिए अपवित्र हो जाता है,? जबकि श्रृष्टि कर्ता या निर्माण कर्ता वही मजदूर है। क्या यही समाजवाद है?
आज वही मजदूर कह रहे हैं–कि
“जिन महात्माओं ने ला कर दी हमें आजादी
उन महात्माओं को न शांति मिली न हमें मिली आजादी।
आजादी मिली उन लोगों को
जिनके पास भुजबल है ,हस्ती है।
एक तरफ भूख से तड़पते कोई
दुसरी तरफ खूब मौज-मस्ती है।।
सौ करोड़ की जनता में बीस को मिली आजादी है। इन बीसों ने हम अस्सी को आज़ भी गुलामी ला दी है ।

छुआछूत को, जात-पात को, और ऊंच नीच को समाजवादियों ने मिटाने का प्रयास करते हुए कहा था कि–

“मोहली की निर्माण सूप डालीया
कुम्हारों की मिट्टी की हड़िया
मजदूरों द्वारा खोदा गया कुआं
इंसान को जन्म देने वाली मां
ये कभी अपवित्र नहीं होती है।
ये भगवान द्वारा भेजे गए अग्रदूत हैं।
और फिर
सूई से लेकर हवा में उड़ने वाले जहाज का निर्माण
धरती पर बने गगनचुंबी आलिशान मकान
पलंग लकड़ी की कारीगरी,जल में चलने वाले जलयान
नव को निरीक्षण करवाने वाले विज्ञान
गौरव है मजदूरों को,
हैं ये मेहनतकश का ये निशान
देश के रक्षक वीर जवान
अन्नदाता यही किसान
सब मजदूर हैं यही प्रमाण।।।।

मजदूरों के हित में कार्ल मार्क्स ने पेरिस के द्वितीय इन्टरनेशनल अधिवेशन 1890 ई. 1 म्ई को एकजुटता दिवस मनाने की घोषणा जारी किया और कहा कि अब मजदूर सिर्फ आठ घंटे ही काम करेंगे। वहीं के महा अधिवेशन में नारा बुलंद किया गया कि– “दुनिया के मजदूर एक हों–“

उसी दिन दुनिया के मजदूरों ने हड़ताल घोषित कर छुट्टी मनाई।।

मजदूर दिवस के उपलक्ष्य में–
समर्पित।

धनेश्वर सिंह काल पत्रकार सह-लेखक जामताड़ा ।!