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"सच वही जो हम दिखाएं"

मां कुष्माण्डा अपनी हंसी से ही ब्राह्माण्ड की रचना की थी

हर परिस्थिति का हंसकर ही सामना करना चाहिए

मां कुष्माण्डा का पूजन चौथे नवरात्र में किया जाता है। इसे मां आदिशक्ति का चौथा रूप माना जाता है। इन्हें सूर्य के समान ही तेज माना जाता है। कुषमांडा का स्वरूप चेहरे पर मुस्कान लिए मां कुष्मांडा के हाथों में क्रमशः कमंडल, धनुष, बाण, कमल पुष्प, कलश,चक्र गदा है। और 8 वें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जपमाला है। बताया जाता है कि देवी के हाथ में जो अमृत कलश है उससे वह अपने भक्तों को दीर्घायु और अच्छे स्वास्थ्य का वरदान देती हैं। उनकी सवारी सिंह की सवारी है जो धर्म का प्रतीक है । कुष्मांडा का अर्थ होता है कुम्हड़ा ।

मां के स्वरूप की व्याख्या इस प्रकार से की गई है मां की अष्ट भुजाएं हैं जो जीवन में कर्म करने का संदेश देती हैं। उनकी मुस्कान हमें यह बताती है कि हमें हर परिस्थिति का हंसकर ही सामना करना चाहिए। मां की हंसी और ब्रह्माण्ड को उत्पन्न करने के कारण ही इन्हें कुष्माण्डा देवी कहा जाता है। जिस समय सृष्टि नहीं थी। चारों और अंधकार ही था। तब देवी ने अपनी हंसी से ही ब्राह्माण्ड की रचना की थी। इसलिए यही सृष्टि की आदि-स्वरूपा आदि शक्ति हैं मां के सात हाथों में कमण्डल, धनुष बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा हैं।

आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जपमाला है। मां का निवास सूर्यमंडल के भीतर माना जाता है। जहां कोई भी निवास नहीं कर सकता।

ये है मां कुष्मांडा के मंत्र …

– या देवी सर्वभू‍तेषु मां कूष्‍मांडा रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

– वन्दे वाञ्छित कामार्थे चन्द्रार्धकृतशेखराम्।

सिंहरूढ़ा अष्टभुजा कूष्माण्डा यशस्विनीम्॥

– सुरासम्पूर्णकलशं रूधिराप्लुतमेव च।

दधाना हस्तपद्मा याम कुष्मांडा शुभदास्तु मे।।