OM SHARMA : @BHARAT TV. NEWS,ASANSOL : पश्चिम बर्दवान के जिला शासक ने एक अच्छी पहल की शुरुआत की है। बंगाल के विद्रोही कवि काजी नजरुल इस्लाम के जन्मस्थली को यादगार बनाने के लिए शुक्रवार को कवि के जन्मस्थली चुरुलिया का दौरा कर इस जगह को बिकसित करने का संकेत दिया गया.

साथ में आसनसोल काजी नजरूल विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ साधन चक्रवर्ती के नेतृत्व में एक दल ने शुक्रवार को विद्रोही कवि काजी नजरूल इस्लाम के जन्मस्थान आसनसोल में चुरुलिया का दौरा किया। गांव का दौरा करने के अलावा, उन्होंने कवि के परिवार के सदस्यों और ग्रामीणों से बात की और उनसे कवि के जन्म के बारे में जानकारी ली। यदि चुरुलिया को पर्यटन मानचित्र पर रखा जा सकता है, तो बांग्लादेश सहित विभिन्न देशों के पर्यटक और शोधकर्ता इस जन्मस्थान पर आ सकेंगे। वे उनके जैसे कवियों पर शोध और अभ्यास करने में भी सक्षम होंगे। कवि की स्मृति को पुनर्जीवित करने के लिए एक ओपन-एयर थिएटर, पार्किंग व्यवस्था, युवा आवास और तालाब का जीर्णोद्धार करने पर विचार किया जा रहा है। पर्यटन विभाग के माध्यम से इस तरह से व्यवस्थित करना चाहते हैं कि यहां आने वाले पर्यटक उस काव्यात्मक विचार की भावना के साथ वापस जा सकें।
कौन थे काजी नजरुल इस्लाम
BHARATTV.NEWS: काजी नजरुल इस्लाम का जन्म २४ मई १८९९ को पश्चिम बंगाल प्रदेश के वर्धमान जिला में आसनसोल के पास चुरुलिया गाँव में एक दरिद्र मुसलिम परिवार में हुआ था।

वे एक बांग्लादेशी कवि, लेखक, संगीतकार और देश के राष्ट्रीय कवि थे। नज़रूल को बांग्ला साहित्य के सबसे महान कवियों में से एक माना जाता है। नज़रूल के नाम से लोकप्रिय, उन्होंने कविता, संगीत, संदेश, उपन्यास, कहानियाँ आदि का एक बड़ा समूह तैयार किया, जिसमें समानता, न्याय, साम्राज्यवाद-विरोधी, मानवता, उत्पीड़न के खिलाफ विद्रोह और धार्मिक भक्ति शामिल थे।
उनकी प्राथमिक शिक्षा धार्मिक (मजहबी) शिक्षा के रूप में हुई। किशोरावस्था में विभिन्न थिएटर दलों के साथ काम करते-करते उन्होने कविता, नाटक एवं साहित्य के सम्बन्ध में सम्यक ज्ञान प्रापत किया।
नजरुल ने लगभग ३००० गानों की रचना की तथा साथ ही अधिकांश को स्वर भी दिया। इनको आजकल ‘नजरुल संगीत’ या “नजरुल गीति” नाम से जाना जाता है। अधेड़ उम्र में वे ‘पिक्स रोग’ से ग्रसित हो गए जिसके कारण शेष जीवन वे साहित्यकर्म से अलग हो गए। वांगलादेश सरकार के आमन्त्रण पर वे १९७२ में सपरिवार ढाका आये। उस समय उनको वांगलादेश की राष्ट्रीयता प्रदान की गई। यहीं उनकी २९ अगस्त १९७६ को मृत्यु हो गई।














