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चित्तरजन में बनीं फिल्म “ ऊर्जा शक्ति का श्रोत’ देखने के बाद उड़ जायेंगे आपके होश! फिल्म देखने के लिए इस लिंक पर क्लीक करें -https://www.youtube.com/watch?v=gWtQD9zaxCA

चिरेका के 70 गौरवशाली वर्ष पर लघु फिल्म “ऊर्जा शक्ति का श्रोत” का लोकार्पण

चित्तरंजन : चित्तरंजन रेलइंजन कारखाना द्वारा ओवल मैदान में आयोजित 74वें स्वतंत्रता दिवस समारोह के अवसर पर चिरेका के 70 गौरवशाली वर्ष पूर्ण होने पर एक लघु फिल्म “ ऊर्जा शक्ति का श्रोत “ का , श्री प्रवीण कुमार मिश्रा, महाप्रबंधक, चिरेका द्वारा डिजिटल कॉपी का लोकार्पण किया गया एवं YOUTUBE पर अपलोड की गयी । इस लघु फिल्म के द्वारा चित्तरंजन रेलइंजन कारखाना के, 26 जनवरी 1950, गणतन्त्र दिवस, के शुरुआती सफर से लेकर अभी तक के दुनिया के सबसे बड़े विद्युत रेलइंजन निर्माता बनने में 70 वर्षों की स्वर्णिम गौरवशाली यात्रा को दर्शाया गया है । इन 70 वर्षों में चिरेका ने स्टीम लोकोमोटिव के निर्माता के रूप में सफ़र आरंभ किया और फिर डीजल लोकोमोटिव और वर्तमान समय के आधुनिक, उच्च शक्ति वाले 6000 HP से 9000HP के विद्युत रेलइंजन के निर्माता के सफर को सफलतापूर्वक पूरा किया है।

जुलाई 2020  तक चिरेका ने दस हज़ार से भी ज्यादा रेल इंजन का निर्माण किया है। वित्तीय वर्ष, 2018-19 में रिकॉर्ड 402 इलेक्ट्रिक इंजन का उत्पादन किया जिसे लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स ने वर्ल्ड रिकार्ड्स की मान्यता दी । इसके अलावा चिरेका ने अपने ही कीर्तिमान को पीछे छोड़ते हुए वित्तीय वर्ष 2019-20 में 431 विद्युत रेलइंजन का उत्पादन कर नया इतिहास रचा। यह फिल्म www.bharattv.news ke youtube account पर फिल्म देखने के लिए इस लिंक पर क्लीक करें – https://www.youtube.com/watch?v=gWtQD9zaxCA साथ ही चित्तरंजन लोकोमोटिव वर्क्स के ऑफिशियल अकाउंट लिंक   https://youtu.be/JY3pxhNUG-8  पर उपलब्ध है ।

भाप से एलएनजी तक, भारतीय रेल का महत्वपूर्ण कदम

भारत के प्राथमिक भाप चलित इंजन कोयले से चलाए जाते थे और उन्हें इंग्लैंड से आयात करना पड़ता था।

वह सन् १८५३ के अप्रैल माह की गर्म उमस भरी एक दोपहर थी, जब तीन इंजनों (सिंध, साहिब और सुल्तान) द्वारा खींची जाने वाली १४ डिब्बों की ट्रेन बोरीबंदर स्टेशन (आज का सी.एस.टी.) से ठाणे जाने के लिए चल पड़ी थी। लगभग ४०० यात्रियों से भरी यह ट्रेन जैसे-जैसे आगे बढ़ रही थी, उत्साह और उत्सव भी बढ़ता जा रहा था, यहाँ तक कि २१ बंदूकों की सलामी ने भी इस अवसर को विशिष्ट बनाया था। लगभग ३४ किलोमीटर की यह दूरी १ घंटे १५ मिनट में तय की गई थी। ग्रेट इंडियन पेनिंसुला (जी.आई.पी.) रेलवे द्वारा पहली बार ट्रेन चलाए जाने के साथ ही अंततोगत्वा भारत में ट्रेन आ पहुँची थी। भारत के प्राथमिक भाप चलित इंजन कोयले से चलाए जाते थे और उन्हें इंग्लैंड से आयात करना पड़ता था। उदाहरण के लिए, बंबई और ठाणे के बीच चलने वाली प्रथम ट्रेन के इंजन, Vulcan Foundry in England में बनाए गए थे। १८५३ में प्रथम ट्रेन चलाए जाने के बाद रेल संजाल का विस्तार तेजी से होने लगा, आरंभिक चालन व्यवसायिक और सैनिक महत्व के थे। भारत में उत्पन्न होने वाले बहुत से कच्चे माल (मुख्यतः कपास) को इंग्लैंड भेजे जा सकने की संभावना के कारण ही बंबई, कलकत्ता और मद्रास जैसे तीन मुख्य बंदरगाह विभिन्न रेल कंपनियों के अस्तित्व में आने के केंद्र बिंदु बने। २०वीं सदी के करवट लेते ही, रेल के इंजन भारत में बनने लगे और रेलवे का कामकाज ब्रिटिश सरकार ने अपने हाथों में ले लिया. १९२० के दशक के बाद से, भारत की लम्बाई और चौड़ाई में ६६,००० किलोमीटर में बिछाई गई रेल की पटरियों के साथ ही विभिन्न स्थानों को रेल सेवा से जोड़ने के मामले में भी तेजी आ गई थी। जहाँ भाप चलित इंजनों से सारा कार्य लिया जा रहा था, वहीं विद्युत इंजनों का परीक्षण भी चल रहा था। भारत की सबसे पहली विद्युत रेल ३ फरवरी १९२५ को विक्टोरिया टर्मिनस और कुर्ला के बीच १६ किलोमीटर की दूरी पर दौड़ी थी। सन् १९४७ में स्वतंत्रता के पश्चात्, भारत सरकार ने रेल के विस्तार और विकास में अत्यधिक रुचि ली। २६ जनवरी १९५० को पश्चिम बंगाल में चितरंजन लोकोमोटिव वर्क्स (सी.एल.डब्ल्यू.) नामक स्वदेशी लोकोमोटिव कारखाना स्थापित किया गया। कुछ वर्षों पश्चात्, वाराणसी के डीज़ल लोकोमोटिव वर्क्स (डी.एल.डब्ल्यू.) के साथ सी.एल.डब्ल्यू., विश्व में रेल इंजन के सबसे बड़े निर्माताओं में से एक बन गया। सन् १९५७ में प्रथम डीज़ल विद्युत रेल इंजन (डब्ल्यू.डी.एम.- 1) भारत आया। यह रेल इंजन अमेरिकन लोकोमोटिव कंपनी (एल्को) द्वारा बनाया गया था। आगे चलकर यह अन्य रेल इंजनों के लिए प्रतिमान बन गया, खासकर डब्ल्यू.डी.एस.-२ जो भारतीय रेलवे का सर्वाधिक प्रयुक्त होने वाला रेल इंजन था। आगामी कुछ दशकों में डीज़ल चलित रेल इंजनों ने भाप चलित रेल इंजनों पर तेजी से प्रभुत्व कायम कर लिया। सी.एल.डब्ल्यू. द्वारा भाप चलित अंतिम (३०००वाँ) रेल इंजन सन् १९७0 में बनाया गया था। इसका नाम Anthim Sitara या अंतिम सितारा रखा गया था और १९९० के दशक तक भाप चलित सभी रेल इंजन चरणबद्ध रूप से बाहर हो गए थे। 2014 में, Indian Railways के पास लगभग ५,००० डीज़ल, ४,५०० विद्युत और ४० के करीब भाप चलित रेल इंजन हैं। डीज़ल के आसमान छूते दामों को देखकर, भारतीय रेल ने दक्षिण भारत में चलने वाले रेल इंजनों में बायो-डीज़ल (डीज़ल और जेट्रोफा तेल का मिश्रण) के उपयोग का परीक्षण आरंभ कर दिया। भविष्य की ओर देखते हुए, भारतीय रेलवे अब एक और छलांग लगाने तथा Liquefied Natural Gas (LNG) locomotives को काम में लेने की योजना बना रही है, जो अधिक ईंधन कार्यक्षम हैं और जिनकी परिचालन लागत डीज़ल के रेल इंजनों की तुलना में काफी कम है। भारत में पहली ट्रेन चलाए जाने के बाद से अब तब १६० से अधिक वर्ष बीत चुके हैं। आज, भारतीय रेलवे लगभग 11,000 trains every day चला रही है, जिनमें से ७,००० यात्री ट्रेनें हैं और ये प्रतिदिन लगभग १ करोड़ ३० लाख यात्रियों को एक से दूसरे स्थान पर पहुँचा रही हैं। यह यात्रा साल दर साल और बेहतर होती जा रही है। sabhar : money control