BHARATTV.NEWS,AURANGABAD: आज दिनांक- 2 नवंबर 2022 को जिला पदाधिकारी, श्री सौरभ जोरवाल द्वारा जिला स्तरीय अन्तर्विभागीय कार्य समूह की बैठक का आयोजन समाहरणालय स्थित कार्यालय कक्ष में किया गया।

जिला पदाधिकारी द्वारा पृच्छा के क्रम में जिला कृषि पदाधिकारी, औरंगाबाद के द्वारा अन्तर्विभागीय कार्य समूह के बैठक के उद्देश्य से सभी सदस्यो को अवगत कराते हुये फसल अवशेष जलाने एवं उनके मानव जीवन पर होने वाले प्रभाव के बारे मे बताया गया। साथ ही सभी सदस्यों को अपने-अपने दायित्व का निर्वहन करने का अनुरोध किया गया है। जिला पदाधिकारी के द्वारा जिला कृषि पदाधिकारी को निर्देश दिया गया कि जिला में उपलब्ध हार्वेस्टर मालिक के साथ बैठक कर पास निर्गत किया जाय एवं सुनिश्चित किया गया बिना एस0एम0एस0 यंत्र के हार्वेस्टर से धान फसल की कटाई नहीं की जाय। अगर बिना एस0एम0एस0 यंत्र के हार्वेस्टर चलाते हुये कोई पाया जाता है तो उनके हार्वेस्टर को जप्त कर थाना को सुपूर्द करने का निर्देश दिया गया।
जिला कृषि पदाधिकारी, औरंगाबाद के द्वारा जिला पदाधिकारी को अवगत कराया गया कि जिला में मधुवा कीट का प्रकोप बढ़ने के कारण धान फसल को काफी नूकसान हो रहा है। इस बैठक में उपस्थित वरीय वैज्ञानिक-सह-प्रधान, कृषि विज्ञान केन्द्र, सिरिस के द्वारा बताया गया कि भूरा मधुआ कीट धान का रस तनों से चूसता है। ये हल्के भूरे रंग के होते हैं। वयस्क एवं बच्चे पौधे तने के आधार में रस चूसते हैं। अधिक रसश्राव के कारण पौधे पीले हो जाते हैं तथा जगह-जगह गोल चटाईनूमा क्षेत्र बनता है। जिसे हापर बर्न कहते है। इसके पश्चात उनके द्वारा इससे बचने के उपायों के बारे में बताया गया।
बैठक कीे समाप्ति के उपरान्त जिला पदाधिकारी, जिला कृषि पदाधिकारी एवं वरीय वैज्ञानिक-सह-प्रधान, कृषि विज्ञान केन्द्र, सिरिस के द्वारा मधुवा कीट के प्रकोप को देखने हेतु ग्राम बोझा बिगहा, मंजूराही, लखनी खाप एवं खैरा-खेरी में क्षेत्र भ्रमण कर कृषक श्री मिथलेश कुमार सिंह, श्री बालेश्वर सिंह, श्री ब्रजेश कुमार सिंह, श्री सत्येन्द्र मिस्त्री, श्री शिव दयाल भगत, श्री गोविन्द पासवान, एवं श्री बैजनाथ सिंह के खेतों का निरीक्षण एवं उपर्युक्त कीटनाशक का प्रयोग करने का अनुरोध करते हुये बताया गया कि जो भी विभागीय निर्देश होगा उसका लाभ किसानों को ससमय दिया जाएगा।
मगध क्षेत्र में फसल में मधुआ कीट लगने लगा है।
भूरा मधुआ कीट धान का रस तनो से चूसता है। ये हल्के भूरे रंग के होते हैं। व्यस्क एवं बच्चे पौधे तने के आधार मे रस चूसते हैं। अधिक रसश्राव के कारण पौधे पीले हो जाते हैं तथा जगह जगह गोल चटाईनुमा क्षेत्र बनता है जिसे हाॅपर बर्न कहते है।
इसके लिए निम्न दवाएं उपयोगी है।
एसिटामेप्रिड 20% एस पी 0.25 ग्राम
अथवा
बूप्रोफेजिन 25% एस सी 1.5 मिलीलीटर
अथवा
कार्बोसल्फान 25 ई सी 1.5 मिलीलीटर
अथवा
इथोफेनोप्राक्स 10% ई सी 1 मिलीलीटर
अथवा
फिप्रोनिल 0.5 एस सी 2 मिलीलीटर
अथवा
थायामेथाक्साम 25 % डब्लू जी 1 ग्राम
अथवा एसिफेट 50% + इमिडाक्लोप्रिड 1.8 % एस पी 2 ग्राम
फिप्रोनिल 0.4 % + थायमेथाक्साम 4 % एस सी 2 मिलीलीटर
प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर फसल में छिड़काव करना है।
1 एकड़ में लगभग 150 से 200 लीटर पानी का प्रयोग किया जाना चाहिए।
इनमें से कोई एक दवा प्रयोग की जा सकती है एवं 5 दिन पर दुबारा स्प्रे किया जाना चाहिए।












