BHARATTV.NEWS: आसनसोल लोकसभा क्षेत्र में देखा जाय तो 60% मतदाता हिन्दीभाषी हैं जो किसी भी चुनाव में निर्णायक भूमिका निभाने की क्षमता रखते हैं। यही वजह है कि 1998 से टीएमसी ने इस लोकसभा क्षेत्र से सात बार अहिन्दी भाषी उम्मीदवार को अपना प्रत्याशी बनाया।मगर, एकबार भी किसी टीएमसी प्रत्याशी ने सफलता अर्जित नहीं की। सभी जानते हैं कि गत् लोकसभा चुनावों में टीएमसी की तरफ से पांच बार मलय घटक को उम्मीदवारी दी गई तथा एक-एक बार दोला सेन और मुनमुन सेन को भी टीएमसी की टिकट पर सांसद पद पर खड़ा किया गया। लेकिन हर बार टीएमसी को मुंह की खानी पड़ी थी। शायद यही वजह रही होगी कि तृणमूल सुप्रीमों ने काफी समझ-बुझ कर लोकसभा के इस उपचुनाव में हिन्दीभाषी उम्मीदवार के रूप में बिहारी बाबू शत्रुघ्न सिन्हा को चुनावी मैदान में उतारा है।
सर्वविदित है कि 2011 के विधानसभा चुनाव के दौरान आसनसोल में ही चुनावी सभा को संबोधित करते हुए ममता बनर्जी ने हिन्दीभाषियों को बाहरी कहकर संबोधित किया था।जिसकी वजह से उन्हें हिन्दीभाषियों के काफ़ी विरोध का सामना करना पड़ा था,जिसका खामियाजा उन्हें आसनसोल नगर निगम में प्रथम बार एक हिंदीभाषी जितेन्द्र तिवारी को मेयर बनाकर चुकाना पड़ा था। विडंबना यह है कि आज वही जितेन्द्र तिवारी टीएमसी का दामन छोड़ कर भाजपा में शामिल है और भाजपा की टिकट पर आसनसोल लोकसभा सीट से सांसद बनने की सोच रखता है। देखना यह भी है कि क्या बिहारी बाबू शत्रुघ्न सिन्हा के खिलाफ़ भाजपा तिवारी को टिकट देगा?
अगर आसनसोल के राजनीतिक गलियारे में दबे जुबान से टीएमसी उम्मीदवार शत्रुघ्न सिन्हा को लेकर जो खिलाफत की बू उठते दिख रही है वो सही नहीं है। लोग दबे जुबान से यह भी कहते नजर आ रहे हैं कि बाहर से उम्मीदवार लाकर थोपने की परंपरा बंद होनी चाहिए। कहीं ऐसा न हो कि जीत के बाद आसनसोल की जनता को एकबार फिर से अपने सांसद का चेहरा देखने के लिए केवल इन्तज़ार की घड़ियां ही ना गिननी पड़े।-(पत्रकार पारो शैवलिनी की कलम से)












