जामताड़ा (फतेहपुर): गत दिनांक पांच फरवरी शनिवार को साहेब विशेश मरांडी की अध्यक्षता में आदिवासी सैंगेल अभियान के तहत एक बैठक पालाजोरी बस्ती में स्थित मांझी थान पर की गई। बैठक में मुख्य अतिथि के रूप में विशेश्वर मरांडी थे। बैठक में उपस्थित आदिवासियों को सम्बोधित करते हुए बताया कि वर्तमान हेमन्त सोरेन सरकार आदिवासी विरोधी है। ऐसा इसलिए कहना पड़ता है कि इन्होंने ने आज तक आदिवासियों के लिए स्थानीय नीति नहीं बनाई और ना ही नियोजन नीति बनाई। इतना तो छोड़िए हेमन्त सोरेन सरकार ने संथाली भाषा को आज तक आठवीं अनुसूची में शामिल कराने में ध्यान नहीं दिया। जबकि दिल्ली की केंद्र सरकार ने दिनांक 12 दिसम्बर 2003 में संथाली भाषा को आठवीं अनुसूची में शामिल कर ली थी। लेकिन झारखण्ड में यह संथाली भाषा को राज्य की भाषा के रूप में शामिल नहीं किया गया जो सरासर अन्याय है। जबकि हेमन्त सोरेन सरकार ने मैथिली, अंगिका, भोजपुरी,मघ्ई जैसे बाहरी भाषा को आठवीं अनुसूची में शामिल कर लिया है।इसका विरोध आदिवासी सेंगेल संगठन करता है और और आगे भी विरोध जारी रखेगा।भाषाई विवाद को जान सुन कर मुख्यमंत्री ने खड़ा किया है। झारखण्डिओं की संस्कृति और भाषा को मिटाने का काम किया है जिसे आदिवासी लोग सहन नहीं करेंगे।
झारखण्ड मुक्ति मोर्चा ऐन केन प्रकारेन आज तक सरकार चलाती आ रही है। कभी बी जे पी के साथ, कभी मधुकोड़ा के साथ तो कभी कांग्रेस आर जे डी के साथ मिलकर अठारह साल तक सत्ता में रही और सरकार चलाती रही है। लेकिन आदिवासियों मूलवासियों झारखंडियों के लिए कोई वैसा काम नहीं की जो हम-सब के हीत में है। चुनाव से पहले हेमन्त सोरेन ने हर जगह हर सभा में आदिवासी मूलवासी को वादा करके वोट लिया और सरकार बनाकर मुख्यमंत्री बनते ही बाहरी भाषाओं को राजभाषा के आठवीं अनुसूची में शामिल करा दिया। लेकिन झारखण्ड की क्षेत्रीय भाषा को शामिल नहीं करके इसे बाहर ही रख दिया। स्थानीय नीति को आज तक लागू नही किया। मूलवासी आदिवासी के लिए खतियान आधारित जाति प्रमाण पत्र को लुप्तप्राय कर दिया। यहां से झारखण्ड के मूलवासी आदिवासी अगर मजदूरी करने या, नौकरी रोजगार करने बाहर गए हुए हैं और उनका बाल बच्चे वहीं पढ़ा लिखा है तो हेमन्त सोरेन उसे स्थानीय मूलनिवासी आदिवासी की मान्यता नहीं देते हैं और इसके विपरित झारखण्ड राज्य में कहीं से आकर कोई पढ़ाई-लिखाई झारखण्ड में किया है तो उसे ही झारखण्डी की मान्यता दे दी है। जो यहां के आदिवासी मूलवासी के लिए अन्याय है।
हेमन्त सोरेन सरकार नियोजन नीति को भी बेच रही है। भाषा और संस्कृति को हटाकर हमारी अस्तित्व को मिटाने जा रही है। इसलिए आदिवासी का यह सेंगेल संगठन इसको लेकर अभियान चला रही है और आदिवासियों को जागरुक कर रही है। हेमन्त सोरेन सरकार की नीतियों को यह सेंगेल संगठन करती है।
इस अवसर पर मुख्य रूप से विशेश्वर मरांडी, सागेनेन मरांडी, सुरेश सौरेन, मोहन मुर्मू, मनोरंजन टुडू,शिव ठाकुर सोरेन,निर्मल हांसदा,रामधन मुर्मू, सुखदेव मरांडी,चूनू लाल मुर्मू,सोरभ मरांडी,रोहिदास मरांडी,गुणाधर टुडू,सुखसेन मरांडी आदि बैठक में शामिल थे।














