‘ मंत्री ने अधिकारी को लूटा,
अधिकारी ने कर्मचारी को।
रंगदारी छुटभैय्ए ने लूटा,
गुंडों ने लूटा व्यापारी को।।१
सबने मिलकर जनता को लूटा,
चोर हैं सबकोय।
डर भी इनको है कहां?
मौसेरे भाई हैं सबकोय।।२
नौकरशाहों ने, नेताओं ने
मिलकर कर रहे हैं गोलमाल
गरीबों ने देखा है,
रिश्वतखोरों, चमचों का कमाल।।४
हम तो होते रहे कंगाल,
अफसरों का चल रहा चाल।
पूंजीपति हो रहें मालामाल,
सबने खिंचा है जनता की खाल।।५
किस पर करें विश्वास,
सब जगह हैं भ्रष्टाचार।
शिक्षित हैं बेरोजगार,
जनता हैं बहुत लाचार।।६
सबने मिलकर लूट लिया,
लूटने का सबने छूट दिया।
शरीफों को गुंडों ने पिट दिया,
पार्टियों ने रंगदारों को ही
चुन-चुन कर टिकिट दिया।।
और पुलिस ने इन सबको
अच्छा से अच्छा परमिट दिया।।७
वर्तमान परिपेक्ष्य में।

धनेश्वर सिंह काल
पत्रकार सह-लेखक
जामताड़ा












