Bharat TV News | "The Right Path to Journalism"

"सच वही जो हम दिखाएं"

मरांगबुरू के कहने पर भी ये दिव्य जानवर मंचपुरी आने से मना कर देते हैं

कुशबेडिया के भागा गांव में आदिवासियों ने मनाया परम्परागत तरीके से सोहराय पर्व

BHARATTV.NEWS: मिहिजाम। पांच दिनों तक चलने वाले आदिवासियों के सोहराय, बदना पर्व क्षेत्र में परंपरागत तरीके से मनाया जा रहा है। बुधवार को कुशबेडिया ग्राम पंचायत की मुखिया सोनाली मुर्मू ने भागा गांव के ग्रामवासियों और अपने सगे संबंधियों के साथ पर्व मनाया और परंपरागत नृत्य संगीत में शामिल हुई। उन्होंने बताया कि मरंगबुरु यानि भगवान शिव की पूजा उपासना की जाती है। प्रचलित कथा के अनुसार मरांगबुरू स्वर्ग पहुंचे और अयनी, बयनी, सुगी, सावली, करी, कपिल आदि गाएं एवं सिरे रे वरदा बैल से मृत्यु लोक में चलने का आग्रह किया। मरांगबुरू के कहने पर भी ये दिव्य जानवर मंचपुरी आने से मना कर देते हैं, तब मरांगबुरू उन्हें कहते हैं कि मंचपुरी में मानव युगोंं-युगोंं तक तुम्हारी पूजा करेगा, तब वे दिव्य, स्वर्ग वाले जानवर मंचपुरी आने के लिए राजी होकर धरती पर आते हैं और उनके आगमन से ही इस त्योहार का प्रचलन प्रारंभ होता है। जाहिर है उसी गाय-बैल की पूजा के साथ सोहराय पर्व की शुरुआत हुई है। पर्व में गाय-बैल की पूजा आदिवासी समाज काफी उत्साह से करते हैं। पर्व के पहले दिन गढ़ पूजा पर चावल गुंडी के कई खंड का निर्माण कर पहला खंड में एक अंडा रखा जाता है। गाय-बैलों को इकट्ठा कर छोड़ा जाता है, जो गाय या बैल अंडे को फोड़ता या सूूंघता है उसकी भगवती के नाम पर पहली पूजा की जाती है तथा उन्हें भाग्यवान माना जाता है। मांदर की थाप पर नृत्य होता है। इसी दिन से बैल और गायों के सिंग पर प्रतिदिन तेल लगाया जाता है। दूसरे दिन गोहाल पूजा पर मांझी थान में युवकों द्वारा लठ खेल का प्रदर्शन किया जाता है। रात्रि को गोहाल में पशुधन के नाम पर पूजा की जाती है। खानपान के बाद फिर नृत्य गीत का दौर चलता है। तीसरे दिन खुंटैव पूजा पर प्रत्येक घर के द्वार पर बैलों को बांधकर पीठा पकवान का माला पहनाया जाता है और ढोल ढाक बजाते हुए पीठा को छीनने का खेल होता है।


सोहराय हमें बताता है कि केवल हमें ही जीने का नहीं, पेड़-पौधे और प्रकृति के साथ ही साथ पशु, जो हमारे जीवन का अभिन्न अंग है उसे भी जीने का अधिकार है। हम लोग सिर्फ मनुष्य के बारे में चिंता करते हैं, यह पर्व हमें जीव जीवश्य जीवनम का संदेश देता है। जनजाति संस्कृति और चिंतन पेड़-पौधे से लेकर जीव-जंतु तक की चिता करता है। दुनिया को बचाना है तो निश्चित तौर पर सभी समाज तक इस तरह का संदेश पहुंचाना है। इस अवसर पर मुख्य रूप से बर्मन सोरेन, बलदेव मुर्मू, बिनीता मुर्मू, बेन्सन मुर्मू, सुशील टुड्डू, गोआ मुर्मू, समेत काफी संख्या में बच्चों ने भी हिस्सा लिया।