आज 5 जून विश्व पर्यावरण दिवस है। आज मैं भारत टीवी के लिए स्वरचित कविता पेश कर रहा हूं।
शीर्षक : तुम मुझे संरक्षण दो,मैं तुम्हें हरियाली दूंगा
कवि : पारो शैवलिनी,चित्तरंजन पश्चिम बंगाल।
काटो और काटो
और और काटो
क्योंकि,कटना ही तो नियति है मेरी।
अगर कटूंगा नहीं तो
बटूंगा कैसे
कभी छत,कभी चौखट
कभी खिडक़ी,
कभी खम्भों के रूप में
तो कभी अस्तित्व प्रहरी दरवाजों के रूप में
तुम झूठला नहीं सकते
मेरे अस्तित्व को।
अपने वैभवपूर्ण आशियाने के लिए
दुखती रगों पर लेटी कुटिया के लिए
अमीरों के आलिशान
पलंग के लिए
गरीबों की टूटी
खटिया के लिए
तुम झूठला नहीं सकते
मेरे अस्तित्व को।
मासूम बच्चों के सपनीले
खिलौनों के लिए
बेसहारा,बेबस,मजबूर की लाठी के लिए
तुम झूठला नहीं सकते
मेरे अस्तित्व को।
लाखों-करोड़ों घरों में
चूल्हा जलाने के लिए
पेट की ज्वाला
मिटाने के लिए,और–
तुम्हारी अन्तिम शय्या के
अलमस्त सेज
डेढ़-दो हाथ का अन्तिम बाण मुखाग्नि के लिए
बन सकता हूँ मैं
कटने के बाद ही।
काटो और काटो
और और काटो मुझे
क्योंकि,कटना ही तो नियति है मेरी।
मगर, मत भूलो
मेरा अस्तित्व
जितना जरूरी है
कटने के बाद
उससे कहीं ज्यादा जरूरी है
मेरा जिन्दा रहना
प्रदूषण रहित पर्यावरण के लिए।
मैं तैयार हूं कटने को
तुम्हारे अस्तित्व के लिए।
मगर,
अमल करना होगा तुम्हें
एक पेड़ कटने के पहले
अवश्य लगाओगे तुम
दो पौधा
पर्यावरण के नाम पर।
एक मेरे मरने के लिए
एक तुम्हें जिन्दा रखने के लिए।
याद रहे
हरपल तुम्हें
” तुम मुझे संरक्षण दो,
मैं तुम्हें हरियाली दूंगा
जीवन भर खुशियाली दूंगा।”














