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‘‘खरीफ धान फसल में रोग प्रबंधन‘‘

BHARATTV.NEWSवर्त्तमान समय में धान फसल प्रायः टिलरिंग, गम्भे एवं छिटपुट पुष्पण की अवस्था में है खड़ी फसल में कुछ समस्या जैसे शीथ ब्लाईट, पत्र अंगमारी, फाल्स स्मट, धान का झोंका रोग एवं पत्रलांछन रोग की सम्भावना बढ़ जाती है। साथ हीं मौसम में उतार चढ़ाव के कारण पत्रलांछन रोग एवं शीथ ब्लाईट रोग के प्रकोप की सम्भावना प्रबल हो जाती है। जिस पर नजर रखने की जरूरत है।
1) शीथ ब्लाईटः- पत्रावरण पर हरे भूरे रंग के अनियमित आकार के धब्बे बनते हैं, जो देखने सर्प के केचूल जैसे लगते है।
प्रबंधन/नियंत्रणः-
(1) रोग रोधी किस्मों का व्यवहार करें। (2) खेत में जल निकासी का उत्तम प्रबंध करें। (3) बीजोपचार कार्बेन्डाजिम 50ः ॅच् का 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज का उपयोग करें। (4) यूरिया का टॉप टेªसिंग सुधान होने तक बंद कर दें। (5) कार्बेन्डाजिम 50ः घुलनशील चूर्ण का 1 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर फसल पर छिड़काव करें या भैलिडामाइसीन 3 एल0 का 3 मिली0 अथवा हेक्साकोनाजोल 5ः ई0सी0 का 2 मिली0 प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव करें।
2) शीथ रॉटः- धान फसल के पत्रावरण पर अनियमित आकार के भूरे-काले धब्बे बनते है, जिसके कारण बाली पत्रावरण के अन्दर ही सड़ जाती है।
प्रबंधन/नियंत्रणः-
(1) रोग रोधी किस्मों का व्यवहार करें। (2) खेत में जल निकासी का उत्तम प्रबंध करें। (3) यूरिया का टॉप ट्रेसिंग सुधार होने तक बंद कर दें। (4) कार्बेनडाजिम 50ः घुलनशील चूर्ण का 2 ग्राम या प्रोपिकोनाजोल 25ः ई सी का 1 मिली0 प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए।
3) पत्र अंगमारी रोग (ठण्स्ण्ठण्)ः- इस रोग में पत्तियाँ शीर्ष से दोनो किनारें या एक किनारे से सूखती है। देखते-देखते पूरी पत्तियाँ सूख जाती है। जिससे फसल को नुकसान पहुँचता है।
प्रबंधन/नियं़त्रण
(1) रोग रोधी किस्मों का व्यवहार करें। (2) खेत से यथासंभव पानी को निकाल दें। (3) उर्वरक का संतुलित व्यवहार करें। नेत्रजनीय उर्वरक का व्यवहार नही करें। (4) स्टेªप्टोमाइसिन सल्फेट 90ः $ टेट्रासायक्लीन हाइड्रोक्लोराईट 10ः एस पी का 50 ग्राम प्रति हेक्टेयर या स्ट्रेप्टोसायक्लिन का 1 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी में घोल बनाकर फसल पर छिड़काव करना चाहिए।
4) फाल्स स्मट (थ्ंसेम ैउनज)ः- बाली निकलने के समय कुछ दानें गोल बड़े आकार के मखमली हरे-पीले रंग के हो जाते हैं जो बाद में काले पड़ जाते हैं। लछमिनिया रोग के नाम से भी यह जाना जाता है।
प्रबंधन/नियंत्रण
(1) खेत को खर-पतवार से मुक्त रखें। (2) उर्वरक का संतुलित व्यवहार करें। (3) कार्बेन्डाजिम 50 घुलनशील चूर्ण का 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीजापचार कर बोआई करें। (4) गम्भा अवस्था के 7-10 दिनों के पहले तथा बाली निकलने के बाद कॉपर हाइड्रोक्साईड 77ः घुलशील चूर्ण का 3 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर फसल पर छिड़काव करें। (5) फसल के पुष्पण के पूर्व प्रोपीकोनाजोल 25 ई0सी0 का 1 मिली0 पानी में घोल बनाकर छिड़काव फायदेमंद रहता है।
5) धान का झोंका रोग :- पत्तियों पर आँख या नाव के आकार के धब्बे बनते हैं, जिनके बीच का भाग राख के रंग का हो जाता है, जिससे पत्तियाँ झुलस जाती है। गाँठों पर भी काला-भूरा धब्बा बन जाता है, जो हवा के हल्के झोंकों से टूट कर गिर जाता है। रोग का आक्रमण बाली के नीचे ग्रीवा पर होने से प्रभावित बाली में दाना नहीं बनता है।
प्रबंधन/नियंत्रणः-
(1) खेत की ग्रीष्मकालीन जुताई करें। (2) कार्बेनडाजिम 50 घुलनशील चूर्ण के 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज को उपचारित कर बोआई करें। (3) खेत को खर-पतवार से मुक्त रखें। (4) कार्बेन्डाजिम 50 घुलनशील चूर्ण का 1 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर फसल पर छिड़काव करें अथवा हेक्साकोनाजोल 5ः ई0सी0 का 2 मिली0 प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर फसल पर छिड़काव करें।
6) पत्रलांछन रोग (भूरा धब्बा)ः- पत्तियांे में टिकुली के समान जहाँ-तहाँ भुरे रंग की चित्ती बन जाती है। रोग का आक्रमण बढ़ने पर कई धब्बे आपस में मिलकर पूरी पत्ती पर फैल जाते हैं।
प्रबंधन/नियं़त्रण
(1) सिचाई की समुचित वयवस्था करें। (2) उर्वरक का संतुलित व्यवहार करें। (3) प्रतिरोधी किस्म के बीज को लगायें। (4) कार्बेन्डाजिम 50 घुलनशील चूर्ण का 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीजोपचार कर बोआई करें। (5) मैंकोजेब 75ः डब्लू जी का 3 ग्राम या जिनेब 68ः $ हेक्साकोनाजोल 4ः डब्लू जी का 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।

विशेष सेवा एवं सुविधा के लिए अपने नजदीक के पौधा संरक्षण केन्द्र या कृषि विज्ञान अथवा सहायक निदेशक, पौधा संरक्षण, सहायक निदेशक, उद्यान या जिला कृषि पदाधिकारी से सम्पर्क कर सकते है।