BHARARTTV.NEWS, CHITRA: चितरा कोलियरी के समीप बसा जमुआ गांव में स्थित जंगल वायु प्रदूषण निरोधक का काम करता है। लेटिन इस जंगल के वृक्ष लगातार कटते जा रहे हैं जिससे यह धना जंगल विरल होता जा रहा है। ऐसे ही वन कटते रहे तो कैसे बचेगा पर्यावरण। यह एक यक्ष प्रश्न है इसका जवाब किसी के पास नहीं है।
गांव वासी हीरालाल यादव ,लक्ष्मण दास, प्रभु दास, मानिक यादव, काजल अड्डी, प्रसेनजीत पाल कहते हैं कि यह जंगल उनके गांव के लिए वायु प्रदूषण शोधक संयंत्र के रूप में काम करता था। इस जंगल के लगने के पहले चित्रा कोलियरी से धूल कण, कोयला चूर्ण उड़ता रहता था। उनके घरों में आकर कालीख की परत का रूप ले लेता था। जंगल प्लॉट में पौधारोपण के बाद धीरे-धीरे वृक्ष का रूप लेता गया। लिहाजा जंगल लगने के बाद उन्हें इसके महत्व के बारे में पता चलने लगा। पूर्व की स्थिति और जंगल लगने के बाद की स्थिति में जमीन आसमान का फर्क पड़ने लगा। लेकिन दुर्भाग्य की बात यह है कि प्रतिवर्ष आंधी पानी में पेड़ गिरते रहते हैं। जिसे काट लिया जाता है। इतना ही नहीं निजी स्वार्थ की पूर्ति के लिए भी लोग वृक्षों की कटाई करने से बाज नहीं आते हैं। यही कारण है कि अब यह जंगल घना से विरल होता जा रहा है। इस जंगल के दक्षिणी हिस्से वीरान हो चुके हैं। मध्य में भी बहुत जगह पेड़ काटे गए हैं। उन्हें यह भय सताने लगा है कि लकड़ी काटने की गति इसी तरह बनी रहे तो आने वाले 15-20 वर्षों में यह जंगल उजाड़ जाएगा। आने वाली पीढ़ी को वही वायु प्रदूषण का सामना करना पड़ेगा।














