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आदिवासियों का सबसे बड़ा त्यौहार हाथी लिकां परब सोहराय को लेकर तैयारियां पूरी

जामताड़ा (विन्दापाथर) : संथाल आदिवासियों का पांच दिनी सोहराय परब बांदना त्योहार आगामी दस जनवरी से शुरू होने वाला है और यह त्यौहार उन्नतीस जनवरी को समाप्त हो जाता है जिसकी तैयारी पूरी कर ली जा रही है। इसी क्रम में सुगनीबासा निवासी हेमलाल मुर्मू,सरजन बेसरा,शिव लाल हेम्ब्रम जैसे संथाल आदिवासियों ने बताया कि यह सोहराय परब हम संथाल लोगों के लिए सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण त्योहार है।इसे हमलोग बंधना परब कहते हैं।यह इस लिए सबसे बड़ा परब कहते हैं क्योंकि यह पांच दिनों तक लगातार पूजा अर्चना,खान पान पूरे उत्साह और हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इसलिए इसे संथाल आदिवासी लोग “हाथी लिकां परब”कहा करते हैं।
एक अन्य संथाल समाज सेवी आनन्द हांसदा जो पालाज़ोरी पंचायत सचिवालय में पंचायत सचिव के पद पर कार्यरत हैं, उन्होंने बताया कि यह जो संथाल आदिवासियों का त्योहार सोहराय परब है वह पांच दिनों तक लगातार चलने वाला त्यौहार है। इस लिए इसे संथाल आदिवासी लोग”हाथी लिकां परब बांदना”त्यौहार कहते हैं। पांच दिनों में विभिन्न तरह से विभिन्न देवी देवताओं को पूजने का प्रवधान है। आनन्द हांसदा ने इसे विस्तार पूर्वक बताते हुए कहा कि आदिवासी संथाल का जीवन प्रकृति प्रेम से जुड़ी हुई है।जो इस त्योहार में भी देखने को मिल जायेंगे। संथाल लोगों का जीवन खेती कार्य से जुड़े हुए हैं। उनके फसल धान जब पक कर तैयार हो जाता है और उनके घरों तक पहुंच जाता है तो वे बहुत खुश होते हैं। कृषि कार्य से फुर्सत में वे झूम उठते हैं और इस परब को मनाने लगते हैं। सोहराय परब बांदना त्योहार प्रकृति पूजा इस लिए भी कहा जाता है कि इस त्योहार में आदिवासी लोग गाय बैल, पेड़ पौधे, पहाड़ पर्वत को भी पूजते हैं।
आनंद हांसदा ने यह भी बताया कि इन पांच दिनी सोहराय परब बांदना में प्रथम दिन परिवार के सभी सदस्य नहा धोकर गढ़ पूजा करते हैं जिसमें नायकी भी साथ होता है।। दुसरा दिन अपने पूर्वजों और कुलदेवी देवता को पूजते हैं। तीसरा दिन गौ घुंटा होता है और चौथा दिन हाकू कांटकम होता है और पांचवें दिन गांव में प्रतियोगिता आयोजित होता है जहां गांव के नायकी द्वारा कैले गाछ को काटकर गांव के बीच में या गांव के मोड़ पर गाढ़कर खड़ा किया जाता है। फिर उसके ऊपर एक लकड़ी पौआ रख दिया जाता है और उनके एक निश्चित दूरी से लक्ष्य भैदने को कहा जाता है। जिसका निशाना सही और सटीक होता है वही इस वर्ष का सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर माना जाता है। उसके स्वागत में गांव के नायकी और अन्य लोग भी उसे कंधे पर बैठाकर पूरा गांव घुमाया जाता है।इस तरह से यह पर्व हंसी ख़ुशी से साथ नाचते, गाते, खाते पीते हर्षोल्लास के साथ समाप्त हो जाता है।
आदिवासी आंनद हांसदा ने एक बहुत ही महत्वपूर्ण बात संथाल आदिवासियों को देते हुए कहा कि आज कल सारे देश में कोरोना वायरस फैला हुआ है। उससे मेरे आदिवासी भाई सावधान रहें।मास्क या गमछा अवश्य ही मुंह पर लगायें और झारखण्ड सरकार और केन्द्र सरकार के दिशा-निर्देशों का पालन अवश्य करें। संथाल आदिवासियों से मेरी यही शुभकामनाएं और संदेश है कि कोरोना को हराना है और हमें उससे जीतना है।