होली के दिन ध्यान रखने योग्य बातें
होली में केमिकल व कांच वाले रंगों का प्रयोग न करें। इस से त्वचा को नुक्सान पहुँचता है। साथ ही बहुत से लोगों को एलर्जी की समस्या भी हो जाती है।
रोड पर किसी वाहन चलाते व्यक्ति पर पानी से भरे गुब्बारे न मारें। इस से उस व्यक्ति के दुर्घटनाग्रस्त होने की संभावना अधिक होती है। होली खेलने के लिए स्वच्छ पानी का प्रयोग करें।
होली खेलते समय आप अपनी आँखों का ख्याल रखें। इसके लिए होली खेलते समय चश्मे का प्रयोग करें।
किसी भी वाहन पर पानी ना फेंके इससे दुर्घटना भी हो सकती है।
होली खेलते समय रंगों व पिचकारी से अपनी आँखों को बचा कर रखें।
पर्व के दिन ऐल्कोहॉल का सेवन न करें।
बूढ़े व्यक्तियों पर पानी के गुब्बारे व पिचकारी न मारें।
छोटे बच्चों को होली खेलते समय उनकी सुरक्षा के बारे में अवश्य बता दें।
बेहतर होगा होली में पानी का कम से कम उपयोग करें और सूखे व प्राकृतिक रंगों का इस्तेमाल करें। इसके लिए आप फूलों आदि का प्रयोग करें। या फिर घर पर बनाये हुए रंगों का इस्तेमाल करें।
होली मानाने से पहले इस कहानी को दोहरा लें जरूर : बुराई का एक न एक दिन अंत हो ही जाता है
होली मनाने के पीछे असुर हिरण्यकश्यप के पुत्र प्रह्लाद की कहानी है। हिरण्यकश्यप असुरों का राजा था जो अपने आप को भगवान मानता था। लेकिन हिरण्यकश्यप के पुत्र प्रह्लाद विष्णु भगवान के भक्त थे और उनमें अनंत आस्था रखते थे। ये बात हिरण्यकश्यप को बिलकुल भी रास नहीं आती थी। इस बात को ले कर हिरण्यकश्यप अपने पुत्र का भगवान् विष्णु के प्रति असीम भक्ति का विरोध किया करता था और उस से अप्रसन्न रहता था। उसका विचार था की उसके अलावा किसी और को भगवान नहीं मान सकते हैं। हिरण्यकश्यप द्वारा प्रह्लाद को कितनी ही बार चेतावनी दी जाती है की वे विष्णु की आराधना ना करें वरना उन्हें मृत्यु दंड दिया जाएगा। लेकिन प्रह्लाद ने अपने पिता की एक बात ना सुनी और चेतावनी देने के बाद भी विष्णु की आराधना में लीन रहते थे। हिरण्यकश्यप द्वारा बहुत बार तो अपने पुत्र को मारने की कोशिश की गयी लेकिन वे इस कोशिश में असफल रहे। तमाम कोशिशों के बाद हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका की मदद लेने की सोची। होलिका को भगवान ने वरदान दिया था की होलिका को कोई आग में नहीं जला सकता है। इसके बाद हिरण्यकश्यप द्वारा चिता बनवायी जाती है जिसमे होलिका के साथ प्रह्लाद को बैठा दिया जाता है और चिता को आग लगा दी जाती है। प्रह्लाद चिता में बैठने के बाद भी विष्णु की आराधना में ही लीन रहते हैं और आग में होलिका भस्म हो जाती है। उसका वरदान भी निष्फल हो जाता है क्यूंकि उसने अपने वरदान का दुरूपयोग करने के लिए इस्तेमाल किया था। वहीँ दूसरी तरफ प्रह्लाद आग में बैठने के बाद भी अपनी भक्ति की शक्ति के कारन सुरक्षित रहते हैं।





